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जम्बूस्वामी चरित्र
स्फुरद्विरिग्रहो दसुतंप्रतिध्वनितसंनिभः । प्रस्पष्टार्थको निरागाध्वनिः स्वायंभुवात सुखाव ॥ ८ ॥ भगवानकी ईच्छा बिना भी जिनवाणी प्रगट हुई- महान पुरुचौकी, योगाभ्यास से उत्पन्न शक्तियोंकी संपदा अर्चित्य है । चितवन में नहीं आसक्ती है। कहा है
विवक्षा मंतरेणापि विविक्ताऽसीत् सरस्वती । महीयसामचिन्त्या हि योगजाः शक्तिसम्पदः ॥ ९ ॥
सात सत्यकथन ।
भगवानकी वाणी प्रगट होने के पीछे गौतम गणधर ने कहा- हे श्रेणिक ! मैं अनुक्रमसे जीव आदिसे लेकर काल पर्यंत तत्वार्थके स्वरूपको अनुक्रमसे कहता हूं सो सुनो। जीव, अजीव, मास्रव, बंध, संवर, निर्जरा, मोक्ष ये सात तत्व सम्यग्दर्शन तथा सम्यज्ञान के विषय हैं । पुण्य व पाप पदार्थ स्वभावसे भासव व बन्धमें गर्भित हैं इसलिये तत्वज्ञानी आचार्यने उनको तत्वोंमें नहीं गिना है ।
द्रव्य लक्षणको धारण करने से लोक में छः द्रव्य हैं । जिसमें गुण व पर्याय हो उसको द्रव्य कहते हैं । जीव गुणपर्याय धारी है इसलिये द्रव्यका लक्षण रखने से द्रव्य है। पुद्गल के भी गुणपर्याय होते हैं इसलिये पुद्गलको भी द्रव्य कहते हैं । इसीतरह गुणपर्यायके वारी अन्य चार द्रव्योंकी भी सत्ता है अर्थात् घर्मं, अधर्म, आकाश और काल प्रदेशोंकी बहुलता रखनेवाले द्रव्योंको अस्तिकाय कहते
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