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जम्बूस्वामी चरित्र
दूसरा अध्याय
श्री जम्बूस्वामी पूर्वभव-भावदेव भवदेव स्वर्गगमन । ( श्लोक २४१ का भाव )
संसार दुःखों को हरनेवाले तीर्थंकर श्री संभवनाथको व इन्द्रोंसे वन्दनी श्री अभिनन्दनस्वामीको हम भावसहित नमस्कार करते हैं।
तब समवशरण में विराजित राजा श्रेणिक प्रफुल्लित कमल समान दोनों हाथोंको जोड़कर व भक्ति से नतमस्तक होकर श्री जगतकेगुरु तत्वोंका स्वरूप जानने की इच्छा से यह प्रार्थना करने लगाहे भगवान् सर्वज्ञ ! मैं जानना चाहता हूं कि तत्वोंका विस्तार क्या है, धर्मका मार्ग क्या है, व उसका कैसा फल है । पुण्यवान महाराज श्रेणिकके प्रश्न करनेपर भगवान् श्री महावीर ने गंभीर वाणी से तत्वोंका व्याख्यान किया ।
निरक्षरी ध्वनि । व्याख्यान करते हुए महान् वक्ता के मुखकमलमें कोई विकार नहीं हुआ जैसे-दर्पण में पदार्थों के झलकनेपर भी कोईं विकार नहीं होता है । तालु व ओष्ठ मी हिले नहीं । सर्व अंगसे उत्पन्न होनेवाली निरक्षरी ध्वनि भगवानके मुखसे प्रगट हुईं- स्वयंमुके मुखसे वाणी ऐसी खिरी जैसे पर्वतकी गुफा से ध्वनि प्रगट हो । उस वाणीमें भर्थं भरा हुआ था । कहा है
ताल्वोष्ठमपरिस्यदि सर्वागेषु समुद्भवाः । अस्पृष्ट करणा- वर्णा मुखादस्य विनिर्ययुः ॥ ७ ॥
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