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जम्बूस्वामी चरित्र
चाहिये । राजाके कंठमें हार ऐसा शोमता था मानों मोसकी बूंद ही हों या मानों तारागणोंको लेकर चंद्रमा ही राजाकी सेवाके लिये आगया है। राजाके चौड़े वक्षस्थलमें चंदन चर्चा हुआ था। मानों सुमेरु पर्वतके तटपर चंद्रमाकी चांदनी छाई हुई है।
___ राजा सिके ऊपर मुकुट मेरुके समान शोमता था, मानों मेरुके दोनों तरफ नील व निषध पर्वत ही हो । यहां नील पर्वतके समान केशोंका भाग व निषिधले समान मुखका अग्रभाग तपाए सुवर्णके समान था। राजाके शरीरले मध्यमें नामि नदीके आवर्तके समान गंभीर थी। मानो कामदेवने स्त्रीकी दृष्टि रोकनेको एक जलकी खाई ही खोद दी हो । राजाही कमरका मंडल सुवर्णकी अपनीले व अमरबंधते वेष्ठित था, मानो जम्बूवृक्षके चारों तरफ सुवर्णकी वेदी खड़ी की गई है। दोनो जंघाएं स्थिर, गोल व संगठित थीं, मानों स्त्रियों मनरूपी हाथीने बांधने के लिये स्थमके समान थीं। दोनो चरण काल थे व बड़े कोमल थे, वे जलकमकके समान शोभित थे, जिनमें लक्ष्मीने निवास किया था। राजा श्रेणिकके पास शास्त्ररूपी संपदा भी रूपसंपदाके समान ऐसी शोभायमान थी जिससे देखनेवालोको शरदकाल चंद्रमाकी मूर्तिके देखने के समान आनंद होता था । जैसा राजाका रूप सुखप्रद था वैसे ही उसका शास्त्रज्ञान भानन्ददाता था। गजाकी बुद्धि सर्व शास्त्रोंमें दीपक समान प्रवीणतासे प्रकाश करती थी। वह शास्त्रों के पद व वाक्योंके समझने में बहुत चतुर थी। राजा श्रेणिक मधुरभाषी था, सुन्दर तनधारी था,