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जम्बूस्वामी चरित्र भुख बाहर निकाले हुए बैठी थीं। ऐसा विदित होता था कि झरोखों कमल खिल रहे हैं। वहांकी नारियोंकी सुंदरता देखते देखते देवियां चक्ति होती थीं। इसीलिये मालो उनके नेत्रोंको कभी पलक नहीं लगती थी।
(नोट-देवदेवियों कभी पलक नहीं लगती। नेत्र सदा खुले रहते हैं। निद्रा नहीं भाती) उस नगरमें नित्य नृत्य व गीत बादित्रकी ध्वनि होती थी। सुगंधित धूरका धूआं फैला रहता था। जिससे मयूरोंको मेघोंकी गर्जनाका भ्रम होता था और बे मोर ध्वनि सहारने लगते थे।
अणिक महाराजला वर्णन । उस राजगृहनगरमें राजाओं के राजा महाराज श्रेणिक राज्य करते थे जो बड़े बुद्धिमान् थे। भनेक भूपाल उनके चरणोंडो मस्त नमाते थे। राजा श्रेणिकके शरीर में सही लक्षण शुष थे, जिनका वर्णन करना कठिन है, तो भी सामुद्रिकशास्त्र ज्ञानके लिये कुछ लक्षण कहे जाते हैं। राजा शिरपर नीले ब घूघरवाले बाल ऐसे शोभते थे मानों कामदेव रूपी काले सर्पके बच्चे ही प्रगट हुए हैं। भमरके समान नेत्र थे, मुल कमलके समान था। जब राजा युद्ध करते थे उनके मुखके भीतरसे किरणे चारों तरफ फैल जाती थीं। वाणी बड़ी ही मधुर थी, फूलके रससे भी मीठी थी। राजाके दोनों नेत्र कर्ण तक लम्बे शोभते थे। उन नेत्रोंने सत्य शास्त्रोंका ही माश्रय लिया है। वे सिखारहे हैं कि बुद्धिमानोंको सच श्रुतको ही सीखना