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जबूस्वामी चरित्र
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सनीतिका प्रचार है। राजाओंके द्वारा प्रजाको करकी बाधा नहीं पहुंचाई जाती है। यहां सदा सुकाल रहला है। वहां के खेत धान्यसे व वृक्षफलोंसे सदा फलते रहते हैं । फलोले लदे हुए वृक्षोंसे मंद मंद सुगंध माती है। पथिकगण इसके रसको इच्छानुसार. पीते हैं । जहाँके कूप व सरोवर जलले मरे हुए हैं व मनुष्यों के मातापको हरते हैं। वापिकाएं निर्मक जलसे भरी हुई मानवों की तृषाको बुझाती हैं। जिनके तटोपर वृक्षोंकी छाया होरही है। वृक्षोंने सूर्यके मातापको रोक रखा है।
जिस देश में बड़ी नदियां स्वच्छ जलसे पूर्ण कुटिलतासे दूरतक बहती थीं, जिससे सर्व मानव व पशुपक्षी लाम उठाते थे।
झीलोंके तटोपर हंस कमलकी दंडी के साथ कल्लोल कर रहे थे। वनोंमें बड़े २ मल्ल हाथी विचर रहे थे। जहां बड़े २ दृढ़ - वृषभ जिनके सींगोंड कर्दम लगा है, थल कमलोंको देखकर पृथ्वीको खोद रहे थे। इस देश स्वर्गपुरीके समान नगर थे। कुरुक्षेत्रकी सड़कोंके समान चौड़ी सड़ थीं। स्वर्गके विमानों के समान सन्दर पर थे व देवोंके समान प्रजा सुखसे वास करती थी। उस देशमें कहीं भंग उपद्रव न था । बदि भंग था तो जलकी तरंगोंमें था। प्रजामें मद न था, मद था तो हाथियोंमें था। दंड देना नहीं पड़ता था, दंड कमलों में था। सरोवरोंमें ही जलका समूह था, कोई नगर जलमम नहीं होता था। गाएं ठीक समयपर गाभिन शेती । श्रीं। जैसे मेघोंसे जल मिलता है वैसे गायोंसे मनुष्योंको दुष