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जम्बूस्वामी चरित्र
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अतिवृष्टि व अनावृष्टि न होनेसे मध्यम वृष्टि होनेसे सर्व प्रकारके धान्य व फल पक गए। ईख, धान्य, जौ, गेहूं, अलसी, धनिया, कोदों, तिल, सरसों, जीरा, मूंग, उड़द, चने, कुलथी, कपास मादि सर्व ही पदार्थ जिनसे प्रनाका जीवन होसके फल गए । धान्य व फलादिके फलनेपर भी प्रजाको यह न जान पड़ा कि किस तरह उनका उपयोग करना चाहिये ।
कर्मभूमिका आगमन । चौथा हाल भानेवाला है। कल्पवृक्षोंका क्षय होगया। प्रजाजन अपने प्राण रक्षणके लिये भाकुलित होगए । क्षुधाकी वेदनासे आकुल होकर सर्व मानव श्री नाभिराजाको महापुरुष जानकर उनके सामने प्रार्थना करने लगे कि हे नाथ! हम मन कैसे जीवें । कल्पवृक्ष नष्ट होगए । कितने ही वृक्ष फल व धान्यसे नम्रीभून खड़े हुए मानो हमको बुला रहे हैं । हम नहीं जानते हैं कि उनमें से फिनको ग्रहण करना चाहिये व किनको छोड़ना चाहिये । इनका हम कैसे उपयोग करें सो सब विधि हमठो बताइये ।
आप महापुरुष हैं, ज्ञाता हैं, हम अज्ञानी हैं. कर्तव्यमूद हैं। हमको कया कर सब भेद समझाइये । तब नाभिराजाने संतोषित करके कहा कि कल्पवृक्षोंके जानेपर ये वृक्ष उत्पन्न हुए हैं, उनमेसे अमुक२ विषवृक्ष हैं, हानिकारक हैं, उनके फळ न ग्रहण करना चाहिये । इक्षुका रस निकालकर पीना चाहिये । धान्यको पकाकर खाना चाहिये । दयालु नाभिराजाने बर्तनोंके बनानेकी व पकानेकी