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जम्बूस्वामी चरित्र होगई। चंद्रमाकी चांदनीके समान शरीरका उज्वल वर्ण होगया। दो दिन के पीछे बहेडा (विभीतक) प्रमाण अमृतमई अल्पाहारसे कृप्ति पा लेते थे। उनकी सर्व अवस्था हरिवर्ष क्षेत्र में स्थित मध्यम मोगभूमि वासियोंके समान होगई। तब फिर क्रम जैसे जैसे काल बीतता गया शरीरकी ऊँचाई, आयु, वीर्य आदि कम होते चले गये । तीन कोड़ाकोड़ी सागर काल बीतनेपर, तीमरा काल दो कोडाकोड़ी सागरका प्रारम्भ होगया। तब हैमवत् क्षेत्र के समान जघन्य भोगभूमिकी अवस्था प्रगट होगई। तब भोगभूमिके मानवोंकी भायु एक पत्यकी रह गई। शरीरकी ऊँचाई २००० धनुष या एक कोसकी रह गई । शरीरमा रंग प्रियंगुके समान शाम रंगा होगया। एकदिन पीछे मामले समान अमृतमई मोजल करके वे तृप्ति पालेते थे।
इस तरह तीसरा काल बीतते हुए जब एक पत्यका माठवां भाग समय शेष रहा तब कर्मभूमिकी रचनाके प्रवर्तानेवाले प्रतिश्रुति आदि चौदह कुलकर क्रमसे हुए । चौदहवें कुलकर श्री ऋषभदेवके पिता श्री नाभिराज हुए । नाभिराजाके समयतक मेघवृष्टि होने लगी। काले नीले जलसे भरे बादल धूमने लगे, विजली कड़पने लगी, पवन चकने लगी, मेघोंकी गरज सुनकर मयूर नृत्य करने लगे। जलवृष्टि ऐसी हुई मानों कल्पवृक्षोंके क्षय होनेपर मेघोंने भश्रुपातकी धारा वर्षा दी। सूर्यकी किरणोंके व जकबिंदुओंके स्पर्शसे पृथ्वी अंकुरित होगई। द्रव्य, क्षेत्र, कालके निमित्तसे परिणमन होजाया करता है। धीरे२ खेतोंमें अन्न पकने लगा । वृक्षोंमें फल पक गए।