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नम्बूस्वामी चरित्र
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व भोजनकी सब विधि बताई। जो मौषधियां थीं उनको भी समझा दिया। प्रजाके पल्याणके लिये नामिराजा कल्पवृक्षके समान होगए । प्रजा सब विधि जानकर बड़ी सन्तोषित हुई और सुखसे प्राणयापन करने लगी। श्री नाभिराजा अकेले ही जन्मे थे, उनके समय जुगलियोंकी उत्पत्ति बन्द होगई थी। तब इन्द्रकी भाज्ञासे देवोंने नाभिगनाका विवाह मरुदेवीके साथ कर दिया। कहा है:
तस्योद्वाहकल्याणं मरुदेव्या सम तदा । यथाविधि सुराश्चना पाकशासनशासनात् ॥ ८१ ॥
देवोंने ही इन्द्रकी आज्ञासे देशोंकी सीमा बांधी; पत्तन, ग्राम, नगर नियत किये। अयोध्यापुरीकी बड़ी ही सुन्दर रचना करी । तबसे कर्मभूमिका कार्य प्रारम्भ होगया। कर्मभूमिके तीन काल हैं-चौथा, पांचमा, छट्ठा।
चौथे कालका वर्णन । चौथा काल बयालीस हजार वर्ष कम एक कोड़ाकोड़ी सागरका है। चौथे कालकी मादिमें ही (नोट-हुंडावसर्पिणी कालके कारण जब तीन वर्ष ८॥ मास तीसरे झालके शेष रह गये थे तब ही श्री वृषभदेव मोक्ष पधारे थे) श्री वृषभदेव प्रथम तीर्थकरने मोक्षमागको प्रगट किया। इस कामें मानवोंकी उत्कृष्ट ऊंचाई ५२५ सवा पांचसौ धनुषकी थी। उत्कृष्ट मायु एक करोड पूर्वकी होती थी। ८१००००० चौरासी लाख वर्षका एक पूर्वोग व ८४ लाख पूर्वांगका एक पूर्व होता है। मध्यम व जघन्य भायु भनेक प्रका