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श्री जैननाटकीय रामायथा
वो हितोपदेशी नहीं है । इस प्रकार जिसमें ये तीनों बाते हों वही माननीय पूजनीय हो सकता है । दूसरा नहीं हो सकता । जिसमें एक बात की भी कमी है वो भावान नहीं कहला सकता । इस प्रकार आप लोगों को सोच समझ कर बुद्धि से विचार कर किसी को पूजना चाहिये ! भगाड़ी श्राप देखिये । सीता की अग्नी परिक्षा किस भांति होती है।
(चला जाता है।
अंक वृतिय-दृश्य पांचवां (एक चौमोर करीब दो गज लम्सा डेढ़ गज चौड़ा एक गज ऊंना हौज है। उसमें अग्नी जल रही है। सीता उस होज के पीछे की तरफ कुछ पृथ्वी से ऊंची खड़ी है । रामचन्द्र आदि सष अगाड़ी की तरफ खड़े हैं । अग्नी बड़ी तेजी से जल रही है।)
सीता-नाम तेरे से प्रभो, भवसिंधु से तर जात हैं। ____ याद करने से तुझे रक्षा को, सुर-गण आत हैं । मैं यदि दृषित हूँ तो, ये तन मेरा जल जायगा । वरना मेरे सत-धरम से, अग्नी जल बन जायगा ।।
( प्रवेश करना चाहती ई.) लव--नहीं, नहीं, माता जी आप अग्नी में न कूदो, माता जी ! कुछ तो हम पुत्रों पर दया करो । इतनी कठोर न बनों