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________________ ( ३५८ ) श्री जैन नाटकीय रामायण - -- देव --आपने यह बहुत अच्छा उपाय बताया । मैं अभी जाता हूं । वहां पर पुष्प वर्षा कराऊंगा, और जय ध्वनी कराऊंगा। — इन्द्र-तो जाओ देर न करो। (दोनों दोनों ओर को चले जाते हैं। ब्रह्मचारीजी आते हैं) ७०-सज्जनो ! आपने देख लिया कि सन पुरुषों के ऊपर जब कष्ट पाता है तब देव लोग किस प्रकार रक्षा करते हैं। देवों की पूजा करना, पीपल भादि को पूजना, देवियों के नाम से हिंसा करना ये सब वृथा है देव मनुष्यों से वैभव में बढ़कर हैं किन्तु श्रात्म बन्ज में नहीं, जो अपने धर्म पर है हैं, जो अपनी . आत्मा को उन्नत बनाते हैं . जो न्याय और नीति को नहीं छोड़ते उनको देव लोग स्वयं पूजा करते हैं। ____ लोग कहने हैं, भगवान रक्षा करने के लिये आते हैं सो बात नहीं है । भावान तो कृत्य कृत्य होगये हैं उन्हें संसारिक झगड़ों से कोई प्रयोजन ही नहीं। मनुष्य भगवान की भक्ति करता है उसी भगवान की भक्ती देव लोग करते हैं जब अपने साथी के ऊपर देव लोग कष्ट देखते हैं तो वो पाकर • किसी न किसी भेष में भगवान के भक्तों की रक्षा करते हैं। यदि आप इस बात को असत्य समझे तो सुनिये । श्राप लोग रामचन्द्रजी को भगवान का अवतार मानते हैं । रामचन्द्रजी स्वयं सीता को कष्ट दे रहे हैं | तो बताइये उस समय सीता की रक्षा
SR No.010505
Book TitleJain Natakiya Ramayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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