________________
पंचम भाग
(३५७ )
Raमय
-
अक तृतीय-दृश्य चतुर्थ (एक इन्द्र और एक देव दोनों आते हैं )
देव-महाराज ! आज पृथ्वी पर बड़ा हा हा कार मचा हुवा है चारों और लोग रो रहे हैं। कल सीता की अग्नी परिक्षा होगी। ___ इन्द्र-मुझे इस बात की बड़ी चिंता है। सीता के सती पन से सारा देव मंडल प्रसन्न है। उसकी भाशनम अत्यन्त भक्ती है। ऐसी सतियों की रक्षा करना हमारा परम धर्म है।
देव-तो फिर क्या उपाय रचा जाय ? इन्द्र---अभी ही एक बात और उत्पन्न हुई है। 'देव-वह क्या ?
इन्द्र-एक मुनी महाराज को ज्ञान की उत्पत्ती हुई है। मुझे वहां पर जाना अत्यन्त आवश्यक है। मैं जाकर उनकी पूजा करूंगा।
देव-तो इन्द्र महाराज : सीता के लिये क्या उपाय सोचा।
इन्द्र-तुम सब देव लोग उस स्थान पर जाना। जिस समय सीता भग्नी में प्रवेश करे उसी समय अग्नि को जल में बदल देना । और उसमें इस प्रकार कमल खिला देना कि सीता कमल पर आसानी से बैठ सके । और इधर उधर दो कमच खिलाना जिन पर उसके पुत्र लव और कुश बैठे।