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( ३५६ )
श्री जैन नाटकीय रामायण । ,
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अब हम में
विश्वास हो जाता है उसी प्रकार सीता की अग्नी परिक्षा से सीता का और मेरा विश्वास हो जायगा।
प्रजा का मनुष्य-महाराजाधिराज ! हम लोगों को क्षमा करें। हम विश्वास करते हैं कि सीताजी निर्दोष हैं से कोई भी अपवाद न करेगा।
राम---अब विश्वास करने से कुछ नहीं बनता । जब इतने दिन तक सीता ने कष्ट उठा लिये तब विश्वास करने से कुछ न बनेगा । जो मेरी प्राज्ञाहै वो.अटत रहेगी । सीता की कल अग्नी परिक्षा अवश्य होगी।
लवण---पिताजी ! माता जी अग्नी में भस्म हो जायगी तो कैसे होगा हम माता किसे कहेंगे ? आप हमारे कार कृपा करके माता जी की ऐसी कठिन परिक्षा न लो।
सीता-पुत्र ! तुम इस बात की चिंता न करो। तुम्हारी अनेक मातायें हैं । इस समय मोह करना वृथा है। अपने पिताको देखो मुझ को कितना मोह करते थे और करते हैं। ये मैं ही जानती हूं। किन्तु न्याय के लिये बो इस समय मोह को त्यागे हुवे हैं। सब-बोलो सती सीता महारानी की जै।
पर्दा गिरता है।
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