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पंचम भाग
( ३५१ )
खुश हुवे सबके हृदय, इनको मुबारिक बाद है || आओ
ओ री सखी नाचें गावें आज सभी ।
लक्ष्मण - भाई साहब तक आप कहते थे कि कोई सीता का पता बताये तो मैं उसे बुलाऊं अब आपको पता मिल गया । शीघ्र ही अपने समीप बुलाइये ।
राम -- जिसे मैं एक बार अलग कर चुका उसे नहीं बुला सकता चाहे उसके विरह में मेरे प्राण ही क्यों न चले जाये ।
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सुग्रीव - - महाराजाधिराज, आपको यह करना उचित नहीं सीता निर्दोष है ये आपके पुत्रों के बल और तेज को देखकर सिद्ध होगया । वह आपके विरह में सुखकर कांटा हो रही है । उसे बराबर आप से मिलने की आशा बनी रहती है ।
राम - यह सत्य है किन्तु मैं लोकापवाद से डरता हूं लोग कहेंगे कि राम से सीता बिना न रहा गया । सीता को एक बार निकालकर फिर घर में रखली ।
सुग्रीव - महाराज, आप इस बात से निश्चिन्त रहिये | इस समय सारी प्रजा सीता की बाट देख रही है । आप शीघ्र ही हमें श्राज्ञा दीजिये ! हम पुष्पक विमान में सीता को बिठाकर अयोध्या लेवें ।
राम - यदि तुम्हारी यही इच्छा है तो जाओ उसे मेरे समीप ले लाओ ।