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________________ पंचम भाग ----- सीता नहीं भाई, उन्होंने मुझे निकाल दी है । जब ( ३४९ ) तक वो स्वयं मुझे न बुलायेंगे, मैं न जाऊंगी । नारद - तुम दोनों बहन और भाई यहीं पर रहो मैं भयोध्या जाता हूं जाकर युद्ध रोकता हूं | ( चले जाते हैं । ) सीता - - भाई ! दोनों पुत्र हठ करके श्योध्याको पिता और चाचा से लड़ने चले गये हैं । हुश्रा भामण्डल - बहन मुझे दोनों पुत्रों की सुनकर बहुत हुआ । मैं उन्हें देखना चाहता हूं । चलो विमान में बैठ चो तुम भी अपने पुत्रोंका पराक्रम देखना । और मैं भी देखूँगा । विमान को ऐसे स्थान पर रोक लेंगे जिससे तुम सबको देख सको, तुम्हें कोई न देख सके | सीता --- यदि तुम्हारी यही इच्छा है तो चलो और शीघ्र ही उन्हें देखकर लौट पायेंगे | पर्दा गिरता है । अंक द्वितीय - दृश्य छठा स्थान युद्ध क्षेत्र ( युद्ध के बाजे बज रहे हैं। दोनों ओर की सेनायें लड रही है, राम लक्ष्मण और लवण अंकुश चारों ही आमने सामने लड़ रहे हैं । नारदजी आते हैं ।)
SR No.010505
Book TitleJain Natakiya Ramayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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