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पंचम भाग
(३४७)
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सीता-आज मेरा बांया नेत्र फड़क रहा है। चित्त में अन्दर ही अंदर खुशी की लहर उठ रही है। श्राज अवश्य किसी प्रिय बंधु का मिलन होगा। याद आया, नारदजी भाई.भामण्डल को लाने के लिये कह गये थे। प्राज मेरा भाई का मिलन होगा। (श्रावाज देती है) भचला ! अचला !!
अचला-क्या सेवा है महारानीजी ?
सीति-जा, भोजनालय में कह कि नाना प्रकार के पकवान बनाय जाय और नारदजीके लिये अलग शुद्ध थाहार बनाया जाय ।
अचला-जाती हूँ देवी जी ( चलने लगती है) सीता--भरी और सुन । अचला---कहिये
सीता--जा चार पांच हार ले भा और तांबूल लेना भाज मेरा भाई मुझ से मिलने पा रहा है।
अचला-जो भाज्ञा । ( चलने लगती है) सीता--भरी और सुन तू तो भागी जाती है। अचला-प्राज्ञा कीजिये।
सीता--तुझे जरा भी खयाल नहीं; मेरा भाई आ रहा है। उसके लिये तु सुंदर प्रासन विधा । एक श्रासन नारद जी के लिये विचा;