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श्री जैननाटकीय रामायण
नारद-पुत्रों के युगल ने श्रावण सुदी पूर्णमासी को जन्म लिया था, वो दोनों सूर्य चन्द्र सरीखे दैदीप्यमान हैं।
__ भामंडल-तो चलिये, मुझे मेरी बहन और भानजों से मिलाइये?
नारद-भामण्डल ! पहले इसका प्रबन्ध करना चाहिये कि युद्ध में किसी के चोट न भावे ।।
भामण्डल-नारद जी ! आप ही बताइये मैं क्या करूं?
नारद--तुम रामचन्द्र के सारे सहायकों को ये सुचित करदो कि ये सीता के पुत्र हैं। वो कोई इन पर वार न करें । लवण और अंकुश ने ये वचन दे दिया है कि हम बचाकर वार करेंगे । राम लक्ष्मण के ब णों का उन पर असर नहीं होगा उनके चक्रों का भी असर इन पर नहीं होगा क्यों कि ये उनके अंग हैं।
भामंडल--जैसी आज्ञा, चलिये मैं अभी सबके पास समा चार भेजे देता हूं। किन्तु पिता पुत्र में युद्ध होगा ये ठीक नहीं। ___ नारद---इसमें कोई हर्ज नहीं है । राम लक्ष्मण को इनके बल का पता चल जायगा । बाद में मैं अपने आप सबको मिला दूंगा। भामंडल---तो चलिये । ( दोनों चले जाते हैं )
(पर्दा खुलता है । सीता बैठी है)