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श्री जैननाटकीय रामायण
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मैं बचा बचाकर वार करुंगां । वो मेरे ऊपर वार करेंगे 'उनको मैं रोकूँगा। उनकी शक्तियाँ मेरे ऊपर निष्फल होंगी क्यों कि मैं उनका पुत्र हूँ। पिता के शस्त्रं से पुत्र की मृत्यु नहीं होगी।
(चला जाता है) नारद-(ऑफर) हैं ये कौन ? सीता, मेरी आंखों को धोखा तो नहीं हो रहा.है।
सीता-मुनिश्वर प्रणाम । मैं भापकी चरण सेविका सीता ही हूं। मुझे वजूजघ सिंहनाद बन में से ले आया है।
नारद-क्या ये दोनों पुत्र तुम्हारे ही हैं ? मेरा अनुमान ठीक निकला।
सीता-नारदजो ! आपने इन्हें कथा सुना कर वृथा कोष उपजा दिया। अब ये अयोध्या में पिता और चाचा से लड़ने
नारद-सती जो कुछ भी होता है वो अच्छे के लिये ही होता है। तुम कोई चिंता न करो । इन्हें जाने दो, तुम्हारा भाई भामण्डल तुम्हें देखने को तड़फ रहा है । में जाता हूं और उसे तुमसे मिलाता हूं । ( चले जाते हैं)
सीता-हाय ! मैं कैसी अभागिनी हूं। मेरे ही कारण पिता पुत्र में युद्ध होगा। हे श्राकाश मण्डल के देवताओं तुम मेरे पति देवर और पुत्रों की रक्षा करना ।
पदी गिरता है।