________________
पंचम भाग |
( ३४३ )
सीता - कहो पुत्र वह क्या समाचार हैं ? लवण ----माताजी ! अयोध्या में कोई राम और लक्ष्मण नाम के दो राजा रहते हैं। राम ने लोकापवाद के भय से अपनी स्त्री सती सीता को निकाल दिया । देखिये माताजी उसने कितना मुर्खता का काम किया । मैं उसे इसकी सजा देनेके लिये प्रयोध्या को सेना लेकर जाउंगा ।
सीता-पुत्र ! तुम्हें ये कैसे मालूम पड़ा ? लवण -- माता ! ये मुझे नारदजी ने कहा । सीता-पुत्र ! जिनके ऊपर तुम सेना ले जा रहे हो वो तुम्हारे पिता हैं । वो मैं ही हूं जिसको उन्होंने चन में निकाला है ।
लवण-क्या सचमुच माता जी आप ही का नाम सीता है ? तब तो हम बड़े भाग्यशाली हैं। जो हमारे ऐसे जगत प्रसिद्ध पुरुषों में श्रेष्ठ पिता हैं ।
सीता-पुत्र ! तुम अयोध्या जाकर अपने पिता के चरणों में शीश नवायो। उनसे युद्ध न करना । यदि उनकी हार हुईं तो भी मुझे दुःख होगा और तुम्हारी हार हुई तो भी मुझे दुःख होगा ।
लवण - माता जी ! मैं अयोध्या जाकर उनसे युद्ध - श्य करूंगा । किन्तु उन्हें किसी प्रकार का कष्ट न पहुंचने दूंगा।