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पंचम भाग
(१२३)
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सुनने के लिये ग्यारह दिन तक उपवास किया था वो सीता मुझसे कैसे अलग होगी।
इधर सीता का प्रेम, उधर लोकापगद । दानों में कौनको छोडूं ? इमर कुना है उधर खाई है। किपर चलूं ? दानों ही मुझे संताप के देने वाले हैं। मैं जानता हूं कि सीता शुद्ध है किन्तु लेोकापवाद से डरता है । यद्यपि शुद्ध है किन्तु लोक के विरुद्ध है तो न उसे करना चाहिये न उस पर चलना चाहिये। (मावाज देते हैं ) कोई है?
द्वारपाल-(भाकर ) माझा महाराज । राम-जावो लक्ष्मण को शीघ्र बुला लायो । द्वारपाल-जो आज्ञा ( चला जाता है)
राम-लक्ष्मण से इसके लिये मैं सलाह लेता हूं। देख वह क्या कहता है।
लक्ष्मण-(भाकर ) भाई साहब के चरणों में सेवक का प्रणाम ।
राम-लक्ष्मण ! मैंने तुम्हें इस लिये बुलाया है कि अभी मेरे पास प्रजा के लोग भाये थे। वो कहते थे कि मैंने जो रावण के यहां रही हुई सीता को घर में रख लिया सो भला नहीं किया इससे अनाचार की प्रवर्ती हो रही है। पर २ में हमारा अपवाद हो रहा है।