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( ३२४ ) श्री जैन नाटकीय रामायण
लक्ष्मया --- जो सीता को दोष लगाते हैं और हमारा अपवाद करते हैं वो मूर्ख हैं। मैं अभी जाकर उन सबको दण्डदूंगा । राम -- नहीं लक्ष्मण ! मारते हुबे के हाथ पकड़े जा सकते
हैं किन्तु किसी की जिन्हा नहीं पकड़ी जा सकती । यदि हमारे भय से कोई हमारे मुंह पर नहीं कहेगा तो पीछे जरूर कहेगा । सीता को मैं अपने घर में नहीं रखूंगा ।
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लक्ष्मण - भाई साहब ! सीता परम सती है । केवल लोकापवाद के भय से भाप न तजियेगा । वह सती आपके बिना किस प्रकार रहेगी ?
राम -- लक्ष्मणा । यदि एक वस्तु शुद्ध है किन्तु लोग उसे बुरा कहते हैं तो उसे त्यागना ही उचित है । इस भगवान ऋषभदेव के कुल को दूषित न करूंगा । नारी नरक में ले जाने वाली है । इसके मोह में पड़ कर मैं अपयश नहीं कमाऊँगा । लक्ष्मण - जो लोग धर्म सेवन करते हैं लोग उनकी निन्दा करते हैं उन्हें ढोंगी बताते हैं। लोग दिगम्बर साधुओं को बुरा बताते हैं । तो ये नहीं कि वह गुरे हैं । इसका यह । मतलब नहीं है कि धर्म सेवन करना या साधुओं की बन्दना करना छोड़ दें ।
राम -- बस चुप रहो। मैं अधिक सुनना नहीं चाहता । मैं नारी के प्रेम से बढ़कर लोकापवाद को समझता हूं ।