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भी जैननाटकीय रामायण
राम-मैं तुम्हें अभयदान देता हूं । तुम निःसंकोच होकर जो कहना है सो कहो।
१ मनुष्य-माज कल बड़ा अनर्थ मचा हुआ है । जो चाहे जिसकी स्त्री को हर ले जाता है । उस स्त्री का पति फिर उसे घर में रख लेता है । बड़े बड़े सामंत दीनों की स्त्रियां चुरा कर ले जाते हैं उनके साथमें कुचेष्टायें करते हैं। किंतु ये खाज चल गया है कि पर पुरुष के घर में रही हुई स्त्री को भी लोग रख लेते हैं । वो कहते हैं कि जब पुरुषों में श्रेष्ठ रामचन्द्रजी ने . हो रावण के घर में रही हुई सीता रखली तो हमें कौन रोक सकता है । यथा राजा तथा प्रजा । भाप पुरुषों में श्रेष्ठ हैं, धर्मात्मा हैं, न्यायगन हैं ऐसा उपाय कीजिये जिससे आपका ये अपयश दूर हो । और प्रजा में फैला हुमा अर्नथ मिट जाय ।
' राम-अच्छा तुम लोग जाओ। मैं इस बात पर विचार कलंगा।
सब-जो आना। (चले जाते हैं।
गम-(स्वगत ) सीता रावण के यहां रह पाई है। माना कि वह परम सती है किन्तु लोक में उसके रखने से मेरा अपयश फैल रहा है जब तक सीता को घर से नहीं निकाला जायगा तब तक यह अपयश मिट नहीं सकता। .
किन्तु मैं सीता को कैसे निकालूंगा । जिसने मेरा समाचार