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पंचम भाग
( ३२१)
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सीता-हैं, अचानक ही मेरी दाहिनी आंख क्यों फड़क ने लगी।
२ सखी-महारानी जी कहिये हम आपकी क्या सेवा करें। हमारे आते ही श्राप व्याकुल क्यों हो गई ?
सीता--सखी रात मैंने एक दुःस्वप्न देखा है। इस समय प्राणनाथके जाते ही मेरी दाहिनी आंख फड़कने लगी अवश्य इसमें कुछ रहस्य है । न मालूम अब फिर क्या दुख मिलने वाला है।
१ सखी-महारानीजी! आप शोक न कीजिये । चलिये उद्यान में चलिये। (सब चली जाती हैं )
अंक प्रथम-~-दृश्य पंचम (दार में प्रजा के लोग खड़े हुवे हैं। रामचन्द्रजी आते
हैं। प्रजाजन उन्होंको शीश झुकाते हैं।)
राम---कहो भाइयों ! क्या प्रार्थना लेकर आये हो सब चुप रहते हैं। कहो, कहो, तुम लोग निःसंकोच होकर जो कहना हो सो कहो ; ( फिर चुप रहते हैं ) क्यों तुम लोग चुप क्यों हो। जिसकी शिकायत तुम्हें करनी हो । निर्भय होकर कहो। यहां पर इस समय तुम लोगोंके और मेरे सिवाय कोई नहीं है।
१ मनुष्य-महाराजाधिराज ! आप हमें अभयदान दें तो हम कहें।