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श्री जैन नाटकीय रामायण
चाहे दूर रहे या पास रहें जिनका आपस में मन खिंचता रहे. वो ही दो सच्चे प्रेमी हैं और वही पवित्र प्रेम है ।
गाना सीता---प्रेम ही है जीवन आधार । बिना प्रेमके कठिन ग्रहस्थी, पले न ग्रहस्थाचार ॥ राम-बिना ग्रहस्थी धर्म नहींहै, ना हो मुनि प्रहार॥प्रे० सीता-प्रेम पती से नेहा लगाऊं। . राम--प्रेम नगर में तुम्हें बसाऊं ॥ सीता--प्रेम से हो श्रृंगार । दोनों-प्रेम तन्तु में बंधकर दोनों, सेवें धर्माचार ॥
हां हां. सेवें धर्माचार ॥ प्रेम ही है जीवन आधार-॥
(दो सखी आती है) दोनों सखी-श्री महाराज पुरुषोत्तम और महारानी की जय हो।
१ सखी-महाराजको राज़ दार प्रजा स्मरण कर रही है।
राम-अच्छा तुम लोग सीता का मन बहलाओ मैं राज दर्बार में जाता हूं। . ( चले जाते हैं ) .