________________
(३०२ )
श्री जैन नाटकीय रामायण ।
-
-
-
-
रावण-तू इतना मुंह चलाता है, नहीं डरता हैं मरने से । __अभी यमपुर को जायेगा, रखा क्या बात करने में || (दोनों में युद्ध होता है, कोई भी नहीं हारता, युद्ध बन्द होता है रावण के हाथ में चक्र आता है रावण उस चक्र को लक्ष्मण के मारने के लिये फेकता है। वह चक्र लक्ष्मणके तीन प्रदक्षिणा देकर लक्ष्मण
के हाथ में आजाता है। ) . सब-~बोल चक्रवर्ती लक्ष्मण को जय ।।
लक्ष्मण-अभी तक तू मुनी वाक्य को झूठ मानता था अब प्रत्यक्ष देखले । तू प्रतिनारायण है तो तुझे मारने के लिये नारायण तेरे सामने खड़ा है अब तक ये चक्र तेरे पास था किन्तु अब मेरे पास आगया है. तेरा शस्त्र तेरे ही प्राणों का घातक होगा।
रावण -(स्वगत) आह, निमित्तज्ञानी मुनिक वाक्य ठीक हुवे, मुझ प्रति वासुदेव अर्थात प्रति नारायण अर्थात अर्धचक्री की मृत्यु इनके हाथों से होगी मुझ दुष्टने मोह के वश में होकर सीता का हर कर अपनी मृत्यु आप बुलाई । अब किसी प्रकार भी मेरा जीवन नहीं है, विभीषण और मन्दोदरी ने मुझे समझाया । उसे भी न समझा । विभीषण ! मन्दोदरी ! क्षमा करना । भाई कुम्भकण ! पुत्र मेघनाथ ! और इन्द्रजीत । क्षमा करना । मैं इस संसार में कुछ हो समय के लिये जीवित हैं । मेरी मृत्यु मेरे सामने खड़ी है।