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चतुर्थ भाग
क द्वितिय -- दृश्य पंचम
( अशोक वाटिका में सीता गा रही है )
( २७३ )
गाना
सिया को काहे बिसारी राम । जबसे छूटी प्राणनाथसे, प्राण हुवे बे काम | बिना प्राण प्यारे के पाये, नहीं मुझे आराम ॥ सि० ॥ मुझ बिन तुम, तुम बिन मैं व्याकुल नहीं मिले सुखधाम यो दरश दिखाओ मुझको, दो मुझको विश्राम ॥
( ऊपर से मुद्रिका गिरती है उसे देख कर ) हैं, ये मेरे पती की मुद्रिका यहां कहां से भाई | भाज मेरे परम सौभाग्य हैं जो उनकी ये मुद्रिका भाई ।
मन्दोदरी - ( भाकर) सीता ! आज तो बड़ी प्रसन्न मालूम हो रहीं हो ! मालूम होता है मेरे स्वामी के प्रेम ने मन में स्थान बनाया है ।
सीता - तेरे स्वामी का प्रेम और मेरे मन में स्थान बनाने, ये संभव है ।
चन्द्र सूर्य स्थित होजावें, पर्वत अपनी छोड़े रीत । . कभी नहीं हो सकता सीता, पर प्रीतम से जोड़ें प्रीत ॥