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चतुर्थ भाग
(२६९)
और यह भी कहना कि बहुत शीघ्र ही तुम्हें यहां से छुड़ायेंगे। तुम शोक करके अपने तन को दुर्बत न बनाओ । विश्वास के लिये मेरी ये मुद्रिका उसे दे देना और उसका चुडामणी लेते श्राना।
हनुमान--आपने जिस प्रकार कहा उसी प्रकार किया जायगा आप निश्चित रहिये । और मुझे अपना परम हितु समझिये । अच्छा मैं अब जाता हूं।
(गले मिलकर चले जाते हैं । )
पर्दा गिरता है,
अंक द्विविय-दृश्य चतुर्थ
(ब्रह्मचारीजी आते हैं।) ज-सज्जनों ! जिस समय हनुमानजी लंका के लिये जा रहे हैं । उस समय क्या क्या घटनायें घटती हैं सो सुनिये !
श्री वायू सुत चल पड़े, सबसे हृदय मिलाय । मनमें हर्षित होगकरे, श्री जिनराज मनाय ||
आकाश मार्ग से जाते हैं, सारी सेना को संग लिये। हैं सोच रहे जो राम लखन ने, उनके प्रति उपकार किये ॥ जो बड़े पुरुष कहलाते हैं, थोड़ा उपकार बड़ा माने। ' है नीच जनों की रीत यही, उपकारी को शत्रू जानें ।।