________________
( २६८ )
श्री जैन नाटकीय रामायण ।
रामचन्द्र — ग्राइये ? मैं हृदय से आपका स्वागत करता हूं 1 हनुमानजी रामचन्द्रजी से लक्ष्मणजी से गले मिलते हैं ) हनुमान -- सचमुच जैस। मैंने सुना था वैसा ही प्रत्यक्ष देखा | लक्ष्मणजी आपको देख कर मैं फूला नहीं समा रहा हूं । उस कोटि शिक्षा को आपने क्षण भर में उठाली । मुझे 'निश्चय है कि आप युद्ध में रावण को अवश्य मागे !
लक्ष्मण - आप मेरी प्रशंसा करके मुझे लज्जिते करते हैं मेरी प्रशंसा उसी में है कि भाई साहब को सीता माता के दर्शन हों। हनूमान - क्यों नहीं ? जिनके भाई धाप जैसे पुरुशोत्तम नारायण हैं । उन्हें किस प्रकार सीता नहीं मिज सकती ? सीता अवश्य मिलेगी ।
जांबूनद -- ( हनूमान से ) श्रीमान आप से प्रार्थना है कि श्राप लंका जाकर सीता को राम का समाचार दें और रावण को किसी प्रकार सीता लौटा देने के लिये कहें ।
हनूमान — अच्छी बात है । मैं अभी लंका के लिये प्रयाण करता हूँ |
रामचन्द्र -- ( हनुमान से एकांत में बुलाकर ) देखो मित्र ! आप हमारे मित्र हो । आपसे कोई बात छिपानी वृथा है । मैं सीता के शोक में अत्यन्त व्याकुल रहता हूं । उसके बिना मुझे कुछ भी अच्छा नहीं लगता श्राप सीता से मेरी सब हालत कहना