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तृतीय भाग।
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में रहना सर्वथा अनुचित है। आगे तुम पुत्रों की माता हो । यदि वो लौट सकें तो लौटा लाओ । मैं तो राज्य दे चुका मेरे हिसाब चाहे कोई भी उसका अधिकारी बने । तुम जैसा उचित समझो करी । मैं वनमें जाकर दीक्षा लेकर अपना कल्याण करूंगा मैं इन संसारिक झगड़ों में भाग नहीं लेना चाहता। (चले जाते हैं। बाद में दोनों स्त्रियां भी चली जाती है)
अँक तृतिय-दृश्य छठा ( साधू और बृह्मचारी आते हैं ।) साध-इसमें थापने कुछ बातें रामायण के एक दम विरुद्ध दिखाई हैं।
७०-वह कौन कौनसी ? __ साधू-प्रथम तो परशुराम को बिल्कुल छोड़ ही गये, दूसरे रामायण में लक्ष्मण ने कोई सा भी धनुष नहीं तोड़ा था, तीसरे भामंडल का कहीं भी हमारे यहां उल्लेख नहीं पाया, चौथे केकई ने दो वर मांगे थे, अापने केवल एक ही बताया है, और बनोवास पिता के द्वारा बताया है, पांचवे हमारे यहां दशरथ को पुत्र के विरह में माता बताया है। आपने उसे बन में भेज दिया ! छटे आपने भरथ को अयोध्या में ही दिखाया है हमारे यहां कहा है कि वो मामा के यहां थे ।