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तृतिय भाग
( २१७ }
कौशल्या - जिस माता के तुम ही एक अकेले पुत्र हो उसे तुम्हारे बिना किस प्रकार चैन पड़ सकगा | क्या करूं विवस हूं ! पती के कार्य में हस्तक्षेप करना कुल्टा नारियों का काम होता है । इस लिये जाओ पिता की आज्ञा का पालन करो।
रामचन्द्र —— अच्छा माताजी प्रणाम । ( चरण छूकरे जाने लगते हैं । सीता रामचन्द्रजी के पैर पकड़ लेती है ) क्यों सीते तू मुझे क्यों रोकती है ?
सीता - प्राणनाथ ! मैं आपको रोकती नहीं हूँ । केवल यह प्रार्थना करती हूं कि आप अपनी अवनि को छोड़ कर न जाइये | मैं भी आपके साथ चलूंगी ।
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राम -- सीते ! तुम कोमलांगी हो । बन में कठिन मार्गो में किस प्रकार चल सकोगी वहां पर पत्तों के बिछोने पर सोना पड़ेगा | फलों का आहार करना पड़ेगा । तुम बन के कष्ट सहने में सदा असमर्थ हो । इस लिये यहीं पर रह कर माता जी को सेवा करो ।
सीता - चाहे कुछ भी क्यों न हो, आपके संग में बन के दुख मी मेरे लिये सुख है । किंतु आपके बिना यहां पर नाना प्रकार के सुख भी मेरे लिये दुख है ।
पंडित नारी अरु लता, आश्रय बिन दुख पांय ।