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( २०६ ) ' श्री जैननाटकीय रामायण
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1 कटता
साधू नहीं किन्तुं गलियों में घूमने वाले गुंडों से भी बदतर हैं। साधू लोग कभी क्रोध नहीं करते । जिसने क्रोष किया वो साध नहीं क्रोधी स्वाधु है।
साधु-एक ब्राह्मण साधू को ऐसे बचन कहते हुने तेरी जीभ क्यों नहीं कट जाती : __ सतीष - यदि मैं झूठी निन्दा करता होता तो अवश्य जीम कटती। • सा- चलते २ ) मैं तुझे श्राप देता है कि तेरा सर्व नाश होगा। (चला जाता है )
सतीष-जिस मनुष्य ने अपने जीवन में सदा दुष्कर्मों के सिवा कोइ सुकर्म नहीं किया उसका श्राप कभी नहीं लग सक्ता । जो श्रेष्ठ पुरुष हैं वो कभी श्राप देते ही नहीं। मैंने सुना है कि जैन मुनि अत्यन्त धीर वीर होते हैं । वो सदा जीवों को संसारसागर से पार उतरने का उपदेश देते हैं । आत्मकल्याण के इच्छक जीवों के लिये वो. नौका के समान हैं। मैं उन्हीं से जाकर धर्म श्रवण करूंगा। और जग से पार उतरने के लिये 'उनके बताये मार्ग पर आचरण करूंगा । ( सामने देख कर ) हैं ! ये कौन दुखिया नारी आ रही है।
मोहिनी--(भाकर ) मैं महा पापिनी हूं। कभी भी मैंने