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________________ तृतिय भाग ( २०५ ) जो हैं लश्मीवान जगत में, सब से पूजे जाते हैं। सतीष-हे साधु बाबा, माप मुझे ऐसा मार्ग वताइये जिससे में इस संसार में अपना हित कर सकूँ । मैं दुनिया से भयभीत हैं। साधू.-यदि तुझे अपना हित करना हो तो जाकर किसी शहर से बाहर ध्यान लगाकर बैठ जा । लोग वहां आ पाकर के तुझे मस्तक नवायें और तुझे पूजें । तु जिस तरह हो सके उन्हें झांसे में लाकर खूब ठगना इस तरह से तुम बड़े मजे से अपनी जिन्दगी बिता सकोगे। सतीप-रहने दीजिये मुझे आपका उपदेश नहीं चाहिये जिस संसार से मैं इतना भयभीत हूं उसी में फंसने का श्राप मुझे मुझे उपदेश देते हैं । आपका काम जिस प्रकार भाली दुनिया का ठाना है वहीं मुझे बताते हैं। धर्म समझकर लोग आपका पैसा देते हैं । उससे आप महा निंदनीय वस्तु गांजा और भंग पीत हैं। साधु-दुष्ट कहींके मेरे लिये तु ऐसे बुरे समझ बोलता है। मारे डंडों के तुझे वेहोश कर दूंगा। सतीष—याद रखो ! यदि तु तंडांग से पेश आये तो मारते २ जहन्नुम तक पीछा नहीं छोडूंगा । तुम जैसे साधु
SR No.010505
Book TitleJain Natakiya Ramayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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