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५४ श्री जैनहितोपदेश भाग २ जो. गायने तृण-भक्षणथी दूध थाय छे अने सापने दूध पावाथी पण झेरज थाय छ." सुबुद्धिजनोए तो सर्वथा प्रथम • पात्रताज प्रगट करवा लक्ष दोरवातुं छे.
२३ श्री वीतरागने ओळखी वीतरागर्नु सेवन कर.
जेने संक्लेशकारी राग, शान्ति भंजक द्वेष अने सम्यग् ज्ञानाच्छादक तथा विपरीत चेष्टाकारी मोह सर्वथा नष्ट थया छे, अने त्रिभुवनमां जेनो महिमा गवायो छे तेज खरा महादेव छे. जे वीतराग, सर्वज्ञ, अक्षय सुखना स्वामी, क्लिष्ट एवां कर्मथी मुक्त अने सर्वथा देहातीत-जन्म मरणथी रहित थया छे. जे सर्व देवोना पूज्य छ, सर्व योगीयोना ध्येय छे अने सर्व नीतिना कर्ता छे तेज खरा महादेव छे. ए प्रमाणे श्रेष्ठ चरित्रवाळा जेमणे सर्व दोष रहित मोक्ष मार्ग प्रकाशक शास्त्र प्ररुप्यां छे तेज परम देव परमास्मा छे.
सदा सावधानपणे तेमनी आज्ञानों अभ्यास करवो एज तेमनी आराधनानो खरो उपाय छे. अने ते पण शक्तिना प्रमाणमां करवाथी अवश्य फळदायी निवडे छे. छती शक्ति गोपवीने प्राप्त सामग्रीनो जोइए तेवो सर्वज्ञ आज्ञाने अनुसार सदुपयोग नहि करनार प्रमादशील जनोने श्री वीतराग सेवानो यथार्थ लाभ मळी शकतो