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श्री जैनहितोपदेश भाग २ जो. करौ तेनै सत्य वस्तु भान करावे छे, जेथी वेनो मोह भ्रम दूर नासे छे.
गुणीजनो निर्गुणीजनोने पण सद्गुणी करवा इच्छे छ, गुणीमाथी गुण ग्रहण करे छे, सद्भूत गुणतुं गान करे छे अने पोताना गुणोनो पण गर्व करता नथी. एवा सद्गुणीनो संग महा भाग्य योगेज थाय. .
गुणीजनो मनथी वचनथी अने कायथी नि:स्पृहपणे परोपकार करे छे. __ सद्गुणीना संगथी सामानां पापनो लोप थाय छे, धर्माचरण करवामां निर्मळ मंति विस्वरे छे, वैराग्य प्रगटे छे, स्नेहराग विघटे छे, सर्व इंद्रियो उपर काबु मळे छे, शोक क्लेश अने भयादिक दुःखनो जय थइ शके छे अने संसारनो पार थाय छे. एम समजीने ख चरित्रने निर्मळ करनार एवा सत्पुरुषोनी सोबत तुं निरंतर कर. पात्रापानी योग्य कदर गुणी पुरुषज करी शके छे पण निर्गुणी करी शकतो नथी. तेथी जो सामामां पात्रता हशे तो ते तेने स्व समान करवा पण भूलशे नहि. परंतु जो पात्रतानी खामी जणाशे तो प्हेलं लक्ष सामाने पात्रता प्राप्त कराक्वा दोरशे, अने वे योग्यज. छे. केमके सुपात्रमांज करेलो श्रम सार्थक थाय छे कडं पण छे के "पात्रापात्रनो विवेक शिखवाने गाय अने सपनो मुकावलो करवो.
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