________________
श्री जैनहितोपदेश भाग २ जो.
२७
अने आ लोक अने परलोकमां मेरु जेवडां मोटां दुःख माथे
व्होरी ले छे,
:
विषम एवा काम-वाणथी पीडित थइ जे धर्मरूप चिंतामणिने तजी देछे, ते हतभाग्य अनेक जन्ममरण संबंधी दुःखने साधी दुर्गतिमां जाय छे.
१० श्री वीतराग देवनी भक्ति कर.
जे सुबुद्धि पुरुष एकाग्रचित्ते सदा वीतराग प्रभुनी सेवा करे छे ते स्वर्ग अने राज्यादि संबंधी सर्व सुखने भोगवीने अंते अक्षय पदने पामे छे.
वीतराग प्रभुने तजीने जे राग द्वेष युक्त देवने भजे छे ते दुर्मति चिंतामणि रत्नने त्यजीने धूळनुं ढेकुं हाथमां लेवा जेवुं करे छे.
जिनेश्वर देवनुं स्मरण मात्र करवायी रोग शोक भय क्लेश ग्रह साकिणि अने दारिद्रादिक सर्व दुःख दूर थइ जाय छे.
जे मुग्ध अनेक देव अने अनेक गुरुने सेवे छे ते कार्याकार्य संबंधी विचार शून्य उन्मत्त जेवो छे, एम जाणवुं.
भव्य कमळोने प्रबोध करनार, सर्व दुःखने दूर करनार, त्रिभु