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श्री जैनहितोपदेश भाग ३ जो.
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नोज अंत करवो युक्त छे. कपायनो अंत थये छतें भवनो अंत थयोज समजवो.
( ११५) उपशम भावथी क्रोधने टाळवो, विनयभावथी मानने -टाळवो, सरलभावथी माया - कपटनो नाश करवो अने संतोषयी लोभनो नाश करवो. कषायने टाळवानो एज उपाय ज्ञानीयोए बताव्यो छे.
(११६) राग अने द्वेषथी उक्त चारे कषायने पुष्टि मळे छे माटे वीतराग प्रभुए सर्व कर्मनो जड जेवा राग अने द्वेषनेज मूळथी टाळवा वारंवार उपदेश कर्यो छे. द्वेपथी, क्रोध अने माननी तथा रागथी माया अने लोभनी वृद्धि थाय छे. राग-द्वेषनो क्षय थवाथी सर्व कपायनो स्वतः क्षय थइ जाय छे. माटे मोक्षार्थीए राग-द्वेषनो अवश्य क्षय करवो युक्त छे.
( ११७) विषय भोगनी लालसाथी राग-द्वेषनी उत्पत्ति अने वृद्धि थाय छे माटे मोक्षार्थीए विषय लालसाने तजीने सहज संतोष गुण सेववो युक्त छे.
(११८) विविध विषयनी लालसावालुं मलीन मनज दुर्गतिर्नु मूळ छे माटे एवा मननेज मारवा महाशयो भार दइने कहे छे. ! ( ११९) मनने मार्याथी इंद्रियो स्वतः मरी जाय छे. इंद्रियोना