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श्री जैनहितोपदेश भाग ३ जो. १६१ (१०४) जेनो संयोग थयो छे तेनो वियोग तो अवश्य व्हेलो मोडो थवानोज छे. त्यारे वियोग वखते शा माटे हृदयने शल्यरुप शोक करवोज जोइये? तेवा दुःखदायी शोकथी शुं वळवार्नु छ ?
(१०५) ममता विना शोक थतो नथी. ज्ञान वैराग्यथी ते ममता घटे छे. सम्यग्ज्ञान या अनुभव ज्ञानथी गांठ तूटे छे अने हृदयतुं बळ वधवाथी घटमां विवेक जागवाथी शोकादिकने अंतरमा पेसवानो अवकाश मळतो नथी.
(१०६) कफना विकारवाल्लं नारीनुं मुख क्यां अने अमृतथी भरेलो चंद्रमा क्यां? ते वने बच्चे महान् अंतर छतां मंदबुद्धि एवा कामी लोको तेमन ऐक्य सरखापणुंज माने छे.
(१०७) हाथीना काननी माफक चपळ-क्षणवारमा छेद दे एवा विषय भोगने परिणामे माठा विपाक आपवावाला जाण्या छतां तजी न शकाय ए केवळ मोहनीज प्रवळता देखाय छे.
(१०८) एक एक इंद्रियनी विषय लंपटताथी पतंगीया, भमरा, माछलां, हाथी अने हरण माणांत दुःख पामे छे तो एकी साथे पांचे इंद्रियोने परवश पडेला पामर प्राणीयोनुं तो कहेज शृं?