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श्री जैनहितोपदेश भाग ३ जो.
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(९६) चिरकाळना लांवा अभ्यासथी शांतवाहिता योगे अहिंसादिक महाव्रतोनी दृढता अने सिद्धि थाय छे जेथी समीपवर्ती हिंसक जीवो पण पोतानो क्रूर स्वभाव तजी दइने शांत भावने भजे छे अने सातिशयपणाथी देव दानवादिक पण सेवामा हाजर रहे छे. आवो अपूर्व महिमा शांत-वैराग्य रसनोज छे एम सर्व मोक्षार्थी जनोने विशेष प्रतीत थाय छे तेथी तेमां नेओ अधिक प्रयत्न करे छे.
(९७) जेमने मन, वचन अने कायामां संपूर्ण स्थिरता प्राप्त थइ छ एवा योगीश्वरो गाममां के अरण्यमां दिवसे के रात्रीमा सरखी रीते व स्वभावमांज स्थित रहे छे. कदापि संयम मार्गमा अरति भजताज नथी. मुवर्णनी पेरे विषम संयोगोंमां चढवाने ते, वर्ते छे. . __ (९८) जेओ फक्त अन्यनेज शिखामण देवामां शूरा छे तेओ खरी रीत पुरुषनी गणनामांज नथी. पण जेओ पोतानेज उत्तम शिखामणो आपीने चारित्र मार्गमा स्थिर करे छे तेओज खरेखर सत् पुरुषोनी गगनामां गगावा योग्य छे.
(९९) कांचनने जेम जेम अग्निमां तपाववामां आवे छे तेम तेम तेनो वान वधतोज जाय छे. शेलडीना सांठगने जेम जेम छेदवामां के.पीलवामां आवे छे तेम तेम ते सरस मिष्ट रस सम छे.