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श्री जैनहितोपदेश भाग ३ जो.
त्मा पोतेज परमात्मपदनो अधिकारी थाय छे, घनघाति कर्मनो क्षय थतांज पोते परमात्म रुप थाय छे, माटे मोक्षार्थी जनोए एवाज परमात्म प्रभुनुं ध्यान करवुं के जेथी अंते पोते पण तद्रूपज थाय.
कर्म
(८३) एवा परमात्मपद प्राप्त पुरुषो पण अवशिष्ट अघाति क्षय थतां सुधी तो शरीरधारीज होय छे पण संपूर्ण कर्मधी मुक्त थये छते तेओ शरीरमुक्त - अशरीरी पूर्ण सिद्ध अवस्थाने प्राप्त थाय छे अने एकज समयमां सर्वथा सर्व बंधन मुक्त छता लोकना अग्र भागे जर स्थितिने भजे छे.
(८४) त्यां तेओ अनंत ज्ञानादिक स्वरुप स्वभावमां स्थित छतां परमानंदमां मग्न रहे छे जन्म मरणादिक सर्व बंधनथी सर्वथा मुक्त रहे छे एवा सिद्ध परमात्मा पण अनंत छे.
(८५) एवा सिद्ध भगवानना सद्गुणोनुं अनुकरण करीने जे तेमनुं अभेदपणे ध्यान करे छे ते स्फीताशयो पण तेवीज स्थितिने अंते भजे छे.
(८६) एवा भावी सिद्ध पुरुषो पण अनंत छे.
(८७) उत्तम प्रकारना आचार विचारमां कुशलपणे पोते मत्रर्तता छता अन्य मोक्षार्थी वर्गने प्रवर्ताविनारा आचार्य महाराजा, पवित्र अंग उपांगरुप आगम सिद्धांतने संपूर्ण जाणीने अन्य विनीत