________________
श्री जैनहितोपदेश भाग ३ नो.
१५५
(७७) कर्मकलंकने दूर करवा माटे सर्वज्ञ प्रभुए सम्यग् ज्ञान दर्शन अने चारित्ररूपी श्रेष्ट साधन बतावेलुं छे.
(७८) एज साधनथी पूर्वे अनेक महाशयोए आत्म शुद्धि करी छे, वर्तमान काळे साक्षात करे छे; अने आगामी काळे करशे एम समजीने उक्त साधनमां दृढतर उद्यम करवो युक्त छे.
(७९) ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप, वीर्य अने उपयोग एज आत्मानुं अमन्य लक्षण छे, एथी भिन्न विपरीत लक्षण अजीव जडनुंज छे.
(८०) व लक्षणांकित सद्गुणोमां रमण करतुं ते स्वभाव रमण कहेवाय छे, अने तेथी विपरीत दोषोमां विभाव प्रवृत्ति कहेवाय छे, मोक्षार्थीए विभाव प्रकृतीने तजी स्वभाव रमणज करवुं उचित छे, एम करवाथी आत्मानुं शुद्ध स्वरुप प्रगट थाय छे.
(८१) सम्यग् ज्ञान, दर्शन, अने चारित्ररूपी रत्नत्रयीनुं संसेवन करवाथी जेमने अनंत ज्ञान, अनंत दर्शन, अनंत चारित्र अने अनंत - वीर्यरुपी अनंत चतुष्टयी प्राप्त थयेल छे; एवा परमात्मपद प्राप्त महापुरुषोज मोक्षार्थीओ ए ध्यावा योग्य छे.
(८२) एवा परमात्मानुं ध्यान करवाथी मन स्थिर थाय छे, इंद्रियो अने कषायनो जय थाय छे, अने शांत रसनी पुष्टिथी आ