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१५४ श्री जैनहितोपदेश भाग ३ जो.
(७०) मोहनो क्षय थये छते शेष सर्व परिवार पण खतः क्षय थाय छे. पण तेनी प्रवळता बडे सर्व शेष परिवारर्नु पण प्राबल्य वधतुं जाय छ, दुनीयामां वळवानमां वळवान शत्रु मोहज छे.
(७१) काम, क्रोध, मद मत्सरादिक सर्व मोहनाज परिवार छे, एम समजीने मोह क्षयार्थीए ते सर्वथी चेतता रहेवानी खास जरुर छे. ___ (७२) हुं अने माहरु एवा गुप्त मंत्रयी मोहे जगतने आंधळं करी नांख्युं छे. अर्थात् ममताथीज मोहनी वृद्धि थती जाय छे.
(७३) नहिं हुं अने नहि मारुं ए मोहनेज मारवानो गुप्त मंत्र छे. अर्थात् निर्मलताज मोहने मारवानुं प्रवळ साधन छे.
(७४) आत्मानु शुद्ध स्वरुप समजवाथी तेमज परभावने वरावर पीछानवाथी मोहद्धं जोर पातळु पडे छे.
___ (७५) स्फटिक रनोनी जे निर्मल आत्मान स्वरुप छे, छतां कमेकलंकथी ते मलीनताने पामेलं होवाथी, जीव तेमां मुग्धताथी मुंझाय छे.
(७६) कर्मकलंक दूर थये छते जेवू ने तेवू निर्मल आत्म स्त्र रुप प्रगटे छे, त्यारे आत्याने तेनो साक्षात् अनुभव थाय छे.