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श्री जैनहितोपदेश भाग ३ जो. १५३ भारे विषन परीणाग आवे छे, माटे तेमनो सर्वथा क्षय करवा सतत प्रयत्न करतो युक्त छे.
(६६) ज्ञानी पुरुषो क्रोधादिक चारे कषायने चंडाळचोकडी तरीके ओळखावे छे, अने तेनाथी सर्वथा अळगा रहेवा आग्रह करे छे.
(६७) राग अने द्वेष ए वने क्रोशदिक चारे कषायर्नु परिणाम छे, अथवा तो राग अने द्वेषयी उक्त क्रोधादि चारे कषायनी उत्पत्ति अने वृद्धि थाय छे. एम समजीने रागद्वेषनोज अंत करवा उजमाळ थई युक्त छे. ते वनेनो अंत थये पूर्वोक्त चारे कषायनो स्वतः अंत थइ जाय छे.
(६८) रागद्वेष ए बने मोहथकी प्रभवे छे, तेथी ते वंने मोहनाज पुत्र तरीके ओळखाय छे, रागने केसरी सिंह जेबो वळवान कह्यो छे. अने द्वेषने मदोन्मत हाथी जेवो मस्त मान्यो छे. तेथी तेमनो जय करवा ज्ञानी पुरुपो मोटा सामर्थ्य नी जरूर जोवे छे.
(६९) राग अने द्वेष केवळ मोहनाज विकारभून होबाथी, ज्ञानी पुरुपो मोहनेज मारवातुं निशान ताके छे. मोह सर्व कर्मयां अग्नेसर छे.