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________________ श्री जनहितोपदेश भाग ३ जो. १४१ होठमां रक्तता, गतिमां मंदता, स्तनभागमां कठीनता, अने चक्षुर्मा चंचळता स्पष्ट जोइने फक्त कामाकुल मंदमति जनोज वैराग्यने. भजता नथी. सुविवेकी जनोने तो ते वैराग्यनी वृद्धि माटेज थायछे. (६) स्वीयो कपट करी गद्गद् वाणीथी वोले छे, तेने कामांधजनो प्रेमउक्ति तरीके लेखे छे. विवेकी हंसो तेथी ठगाइ जता नथी. (७) ज्यां सुधी आहारनी लोलुपता तजी नथी, सिद्धांतना अर्थरूपी महौषधितुं सम्यग् सेवन कर्यु नधी, अने अध्यात्म अमृतर्नु विधिवत् पान कर्यु नयी, त्यां मुधी विषय ज्वरतुं जोर जोइए तेवू घटतुं नथी. विषय तापनी शांति माटे रसलौल्यना त्याग पूर्वक सिद्धांतसार चूर्ण तथा तत्त्वामृततुं सम्यग् सेवन करवूज जोइए. (८) भरयौवन वयमा कामने जय करनार धन्य धन्य छे. (९) जेणे जाणी जोइने कामिनीने तजी छे, अने; संयमश्रीन सेवी छे, एवा सुविवेकी साधुने कुपित थयेलो पण काम कंइ करी शकतो नथी. (१०) प्रियाने देखतांज कामज्वरनी परवशताथी संयम-सत्त्व क्षीण थइ जाय छे, पण नरकगतिना विपाक सांभरतांज तत्वविचार प्रगट थवाधी गमे तेवी व्हाली वल्लभा पण विख जेवी भासे छे, (११) जेमणे यौवन वयमां पवित्र धर्म धुराने धारी महाव्रतो
SR No.010503
Book TitleJain Hitopadesh Part 2 and 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherJain Shreyaskar Mandal Mahesana
Publication Year1908
Total Pages425
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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