________________
-
-
श्री जैनहितोपदेश भाग ३ जो.
वैराग्यसारने उपदेश रहस्य. (१) जे पराइ निंदा विकथा करवामां मुंगो छे, परस्त्रीनुं मुख जोवामां आंधळो छे, अने परायुं धन हरवामां पांगळो छे, तेवो महापुरुपज जगमां जयवंतो वर्ते छे, परनिंदा, परस्त्रीमां रति अने परद्रव्य हरण महा निंद्य छे.
(२) जे आक्रोश भरेलां वचनोथी दूमातो नथी अने खुशामतथी खुशी थइ जतो नथी, जे दुर्गन्धथी दुगंछा करतो नथी, अने खुशवोथी राजी थइ जतो नथी, जे स्वीना रुपमा रति धारतो नथी, अने मृतवानथी मूग लावतो नथी, एवो समभावी उदासी योगीश्वरज सर्वत्र मुख समाधिमां रहे छे..
(३) जेने शत्रु अने मित्र वंने समान छे, जेने भोगनी लालसा तूटी गइ छे, अने तपश्चर्यामां जेने खेद थतो नथी, जेने पथ्थर अने सुवर्ण (रत्नादिक) वंने समान छे, एवा शुद्ध हृदयवाळा समभावी योगीजनोज खरा योगधारी छे..
(४) कुरंगनी जेवा चंचळ नेत्रवाळी अने काळा नागनी जेवा कुटिल केशने धारवावाळी कामिनीना राग पाशमा जे नथी पड़ी। जाता तेज खरा शूरवीर छे.
(५) स्त्रीना मध्यमां कृशता, भृकुटीमां वक्रता केशमा कुटीलता,