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________________ श्री जैनहितोपदेश भाग ३ जो. १३९ १७. ज्ञानदर्शन अने चारित्रादिक गुणोना समूहथी निर्मल अने उन्नतिना स्थानरुप श्री विजयदेव सरिना गच्छमां प्राज्ञ श्री जितविजयजी श्रेष्ठ उन्नतिने पाभ्या. तेमना गुरुभाई श्री नयविजयजी पंडितमा श्रेष्ठ थया. तेमना शिष्य श्रीमन् न्याय विशारद विरुदना धरनार श्री यशोविजयजीनी आ रचना पंडित लोकोनी प्रीतिने अर्थ थाओ ! विविध गुण विशाळ एवा तपगच्छमां थयेला पंडित श्री नयविजयजीना शिष्य श्री यशोविजयजीए आ ज्ञानसार सूत्रनी रचना कीधी छे, आ ग्रंथमां शान्त रसनीज प्रधानता होवाथी ते रसज्ञ पंडितोने अभीष्टज थशे. केमके सर्व रसमां प्रधानरस शान्तरसज छे अने ते रसनी सिद्धिथीज आत्मा निरुपाधिक सुख पामी शके छे.. आ अपूर्व अने अतिशय गंभीर ग्रंथनु स्वरूप निरूपण करतां जे कंड पुण्यार्जन थयु होय तेथी अमने तथा श्रोता जनोने पवित्र शान्तरसनी पुष्टि थाओ! तथास्तु. ! शुभंस्यात् सर्व भूतानाम्. ॥ श्री कल्याण मस्तु.॥ -
SR No.010503
Book TitleJain Hitopadesh Part 2 and 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherJain Shreyaskar Mandal Mahesana
Publication Year1908
Total Pages425
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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