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श्री जैनहितोपदेश भाग ३ जो. १३७ जातोद्रेक विवेक तोरण ततो धावल्यमातन्वते ॥ हृद्गेहे समयोचितः प्रसरति स्फीतश्च गीतध्वनिः॥ पूर्णानंदघनस्य किं सहजया तद्भाग्य भंग्याभवन् ।। नैतद् ग्रंथ मिषात् करग्रहमहश्चित्रं चरित्रश्रियः ॥१५॥
१५. चारित्र लक्ष्मीनो थतो विवाह महोत्सव आ ग्रंथना मिपथी पूर्णानंदी आत्माना सहज तेनी भाग्य रचना वडे वृद्धि पामेला विवेकल्पी तोरगनी श्रेणिवाळा मनमंदिरयां धवलताने विसारे छे अने स्कीत (विशाळ) मंगळ गीतनो ध्वनि पण मांहे प्रसरी रह्यो छे. तात्पर्य के चारित्र लक्ष्मीनो पूर्णानंदधन (आत्मा) नी साथे विवाह थाय छे त्यारे तेनुं मन उब प्रकारना विवेकवाडं अने उज्वल निर्मल बने छे तेमन महा मंगलमय स्वाध्याय ध्याननो घोष वन्यो रहे छे. लौकिकमां पण विवाह समये घरमां उंचा तोरण बांधकामां
आवे छे. घरने घोळवामां आवे छे भने विविध वाजिंत्र तथा मंगळ गीत- गावामां आवे छे. तेम अहिं चारित्र लक्ष्मीने वरनार पूर्णानंदीने सर्व परमार्थथी थयुं छे. सम्यम् ज्ञान अने चारित्रना मेळापथी सर्वत्र आवी घटना थाय छे अने थशे. एमांशुं आश्चर्य छ ? अपितु कंइज नहिं.