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श्री जैनहितोपदेश भाग ३ जो. ११. क्रिया शून्य ज्ञानमां अने ज्ञान शून्य क्रियामां जेटलो सूर्य अने खजूवामां आंतरो छे तेटलोज आंतरो छे. अर्थात् क्रियारहित पण भावना-ज्ञान सूर्य समान छे अने ज्ञान शून्य शुष्क क्रिया मात्र खजूवा जेवी छे.
१२. विभावथी संपूर्ण विरमका रूप यथार्थ चारित्र पण विशिष्ट ज्ञानमुंज फळ छे एम समजीने एवा उत्कृष्ट चारित्रनी सिद्धि माटे ज्ञानी अभिन्न एवा संयममार्गमां दृष्टि देवी. जेथी संयमनी पुष्टि थाय एवो ज्ञान-योगनो अभ्यास प्रमाद रहित करवो, संपूर्ण, अभ्यासथी सहज चारित्र सिद्ध थशे.
सिद्धिं सिद्धपुरे पुरंदरपुरस्पर्धावहे लब्धां ।। श्चिद्दीपोऽयमुदारसारमहसा दीपोत्सवे पर्वणि ॥ एतद् भावन भाव पावन मन चंचचमत्कारिणां । तैस्तैःतिशतैः सुनिश्चयमतैर्नित्योऽस्तु दीपोत्सवः॥१३॥
१३. स्वर्गपुरी जेवा सिद्धपुरमां दीवाली पर्व समये उदार अने सार ज्योतियुक्त आ ज्ञानसार रूप भावदीपक प्रगट थयो, अर्थात् आ ग्रंथ सिद्धपुर नगरमां दीवालीना दिवसे पूर्ण कयों. आ