SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 344
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२८ श्री जैनहितोपदेश भाग ३ जो. सर्व नयनो एक साथ आश्रय करनारज चारित्र गुणमां लीन होइ शके छे, पण बीजो नहिं. २. जूदा जूदा नयो परस्पर पक्ष अने प्रतिपक्षयी कदर्थित थाय छे. अर्थात् एकेक जूदा जूदा नयनेज अवलंबनारनी मांहोमांहे स्वपक्ष अने परपक्षथी कदर्थना थया करे छे. पण सर्व नयने सरखी रीते आदरनार तो समता सुखनोज आस्वाद करे छे. तात्पर्य एवो नीकले छे के समतारस ( शान्तरस ) ना अर्थी जने तो सर्व नयनो सरखी रीतेज आश्रय करवो योग्य छे. अर्थात् निरपेक्षपणे कोइ नयनुं खंडन मंडन करवा प्रवर्त्तं नहिं. ३. सामान्य कथन मात्र, अप्रमाण पण नथी तेम प्रमाण पण नथी. तेनी तेज बात स्यात् पदथी विशेषित थाय तो ते प्रमाणभूत थाय छे. जेमके वस्तु नित्य छे, ए कथन सामान्य होवाथी अत्रमाण नथी ते प्रमाण पण नथी. पण " स्यात् नित्यं " ए कथन विशेपित होवाथी प्रमाणरूप छे तेमज ' स्यात् अनित्यं' एवं कथन पण प्रमाणभूतज छे. केमके दरेक वस्तु द्रव्यपणे नित्य छे पण पर्यायपणे तो अनित्य छे, जेम आत्मा द्रव्यपणे नित्य छे पण मनुष्यादि पर्यायपणे अनित्य छे. एम प्रत्येक वस्तु कथंचित् नित्यानित्य होइ शके छे. ए प्रमाणेज सर्व नयनुं रहस्य समजवानुं छे. तात्पर्य के एकलोनिरपेक्ष नय प्रमाण पण नथी तेम अप्रमाण पण नधी. पण वीजा
SR No.010503
Book TitleJain Hitopadesh Part 2 and 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherJain Shreyaskar Mandal Mahesana
Publication Year1908
Total Pages425
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy