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श्री जैनहितोपदेश भाग ३ जो. स्नै स्त्रिंभिः पवित्रा या, श्रोतोभि खि जान्हवी ।। सिद्धयोगस्य साप्यरीत्, पदवी न दवीयसी ॥८॥
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॥ रहस्यार्थ ।।
वाहरष्टिपणानो दोष नष्ट थये छते महात्मा पुरुषने अंतरमांज सर्व समृद्धि स्फुटतर भासे छे. आम वनवाथी तत्वदृष्टिपणुं अधिकाधिक निर्मल थतुं जाय छे निर्मल तत्त्वदृष्टिना योगे सकल समृद्धि सहज घटमां प्रगटे छे. जेथी सहजानन्द युक्त थवाथी विषयासक्ति विगेरे विकारो स्वतः विनाश पामे छे. अने निर्मल ज्ञानादि सद्गुणो पूर्ण रीते प्रगटे छे.
२. समाधिरुपी नंदनवन, धैर्यरुपी वन, समतारुपी इंद्राणी, अने ज्ञानरूपी विशाल विमान, एवी इंद्रनी साहेवी मुनिने घटमांज प्रगटे छे. तत्त्वदृष्टि निर्मथ मुनिराजने इंद्रथी अधिक साहेवी अंतरमां प्रगटे छे.
३. विशाल ज्ञान अने क्रियारुपी चर्मरत्न अने छत्ररत्नथी मोहरुपी म्लेच्छ राजानी महावृष्टिने निवारता मुनिरान चक्रवर्तीनी बरोवरी को छे. निर्मल ज्ञान दर्शन अने चारित्ररूपी रत्नत्रयी आ