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जैनहितोपदेश भाग ३ जो.
राधक मुनिराज कोइ रीते चक्रवतींथी न्यून नथीज, किंतु अधिकज छे,
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४. नवनवा ज्ञानामृतना कुंडमां मग्न रहो प्रयत्नथी क्षमानुं पालन करनारा मुनि, पृथ्वीतुं पालन करनारा नागेंद्रनी पेरे शोभे छे. अध्यात्म ज्ञानरूपी अमृतना कुंडमांज मग्न रही सहज शांतिने साक्षात् अनुभवनारा क्षमाश्रमणो आत्मगुणथी नागेंद्र करतां अधिक शोभे छे.
अध्यात्मरुपी कैलाशमां विवेकरुपी वृषभ उपर आरुढ थयेला मुनिज्ञप्ति (ज्ञान) अने निवृत्ति ( चारित्र ) युक्त होवाथी गंगा अने गौरी युक्त शिव-शंकरनी पेरे शोभे छे. तत्त्वथी जोतां अध्यात्म गिरिना उच्च शिखर उपर रहेला अने सद्विवेक नृपभ उपर स्वार थइ सम्यग् ज्ञानक्रियाने समताथी सेवनारा निग्रंथ अणगारो सदगुणोमां कोइ रीते शिव-शंकरथी उतरता नथी.
६. ज्ञान अने दर्शनरूपी चंद्र अने सूर्य जेवां निर्मल नेत्रोवाला, नरकने छेदवावाला अने सुखसागरमां शयन करनारा मुनिराज कोइ रोते हरिथी न्युन नथी. परमार्थथी विष्णु करतां वधारे समृद्ध छें
७. परस्पृहारहित सहज अंतरगुण सृष्टिने करनारा मुनिराज बाह्य वस्तुओनी अपेक्षावाली बाह्य सृष्टिने रचनार ब्रह्मा करतां बहु चदि