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श्री जैनहितोपदेश भाग ३ जो. ४. निर्मल ज्ञानरुपी-शखने धारी, मोहनी फोजनो घात करनार मुनि संग्रामना मोखरे उभेला हाथीनी पेरे लगारे बीता नथी. तीक्ष्ण ज्ञान धारावडे सावधानपणे सकळ मोह सुभटोने विदारी नांखी शिवश्रीने संपादन करे छे.
५. जेना मनमा खरी ज्ञानकला जागी छे ते सदा भय रहित आनंदमां मस्त रहे छे, जे वनमा मयूरो विचरे छे त्यां भुजंगनो भय होयज केम ? ज्यां केसरी क्रीडा करतो होय त्यां गजनो प्रचार संभवेज केम ? ज्यां जळहळतो सूर्य उदय पाम्यो होय त्सां अंधकार रहेवा पामेज केम ? तत्त्व दृष्टि पण तेवीज प्रभाववाळी छे.
६. मोहास्त्रने निष्फल करवा समर्थ ज्ञान बख्तर जेणे धायु छे तेने कर्म संग्राममां भय के भंग होयज शानो ? तत्व दृष्टिने मोहनो भयज नथी. ते गमे तेवा सम या विषम संयोगोमांथी सावधानपणे पसार थइ जाय छे.
७. मोहथी मुंझायेला जीवो भयभीत थका भव अटवीमा भम्याज करे छे. मूढ जीवो भयभीत थका कंप्याज करे छे. परंतु प्रवल ज्ञानवंतनुं तो एक पण रुंवाईं कंपतुं नथी. ते तो निर्भयपणे स्वभाविक आत्म सुखमा मग्न रहे छे..
८. जेना चित्तमा निर्भय चारित्र परिणम्युं छे एवा अखंड